दरवाजे की कॉल बेल बजी बरखा जो सोफे पर पैर पसार कर का कॉफी पी रही थी बेल की आवाज सुनकर बहुत चौंक गई.दोपहर के 1 बज रहे थे इस समय तो कोई नहीं आता है.
कॉल बेल फिर बजी…कॉफी का मग सेंटर टेबल पर रखकर कौन आ मरा उसने बुदबुदाते… हुए दरवाजा खोला.
सामने सोना खड़ी थी. सोना जो कि उसके लवर की पत्नी थी जाने क्यों उसे देखते ही उसकी भौ तन गई उसने उसे देखकर कडवा और अजीब सा मुँह बना कर पूछा… कमाल है कल तुमने इतना मुझे सुनाया क्या उससे तुम्हारा पेट नहीं भरा.
सोना हंसकर बोली अंदर तो बुला लो…पहले तभी तो तुम्हें बताऊंगी क्यों आई हूं मुझे शौक थोड़े ही है तुम्हारे यहां आने का. वह अंदर ही अंदर सोच रही थी कि स्वार्थ में व्यक्ति कितना अंधा हो जाता है कि,उसे अपने चरित्र(charitra) का भी ध्यान नहीं रहता है.
मैं तुम्हारे यहां कभी नहीं आती पर तुम्ही कल मुझे चैलेंज देकर आई थी कि, अगर मुझ में इतनी हिम्मत है तो मेरे घर आकर दिखाना तब बातें होंगी तो सोचा तुम्हें हिम्मत भी दिखा आऊं हूं और बातें भी कर आऊं.
ओह तो यह बात है बरखा ने कटाक्ष करते हुए कहा…आओ आ जाओ अब बेहया बेशर्म बन कर आ गई हो तो आओ बैठो और बको और और निकलो यहां से… उसने दरवाजे से हटते हुए पूछा वैसे इतनी गर्मी भरी दोपहर में तुम लेने क्या आई हो.
तुम्हारे चैलेंज का जवाब देने आई हूं बरखा के गंदे शब्द सुनकर उसके तन बदन में आग लग रही थी.. पर खुद को संभालते हुए झूठी हंसी चेहरे पर लेकर सोफे पर जाकर बैठ गई. सोना जानती थी कि बरखा को अपने चरित्र(charitra) की गरिमा का जरा भी ज्ञान नहीं है.
उसके चेहरे पर आज एक चमक और अजीब सी मुस्कान थी. उसके चेहरे को देखकर पता नहीं क्यों बरखा ने महसूस किया कि उसे चिढ़ाने या जलाने के लिए यहां आई है.
बताओ अब क्या लेने आई हो यहां.. क्या बात करनी है तुम्हें बरखा ने बैठते हुए पूछा..
लेने नहीं आज तुम्हें देने आई हूं कुछ… सोना ने कहा
ओहो क्या बात है कल तो तुम सब कुछ ले लेने की बात कर रही थी..आज तेवर बदल कैसे गए….बरखा कुटिल हंसी हंसी.
विकास बता रहा था कि अमर भैया टूर पर गए हैं 10 दिन बाद वापस आएंगे और बच्चे भी स्कूल से तीन बजे से पहले नहीं आने वाले हैं…सोना ने कहा.
हां तो तुम्हें इन बातों से क्या मतलब है…. बरखा बोली.
मतलब है ना वो क्या है ना कि तुम्हारे पति और तुम्हारे बच्चों को तो बेचारों को कुछ पता नहीं है. पर क्या करूं मेरे पति का जो आजकल अलग रास्ते पर चल रहे हैं ना वह अब बच्चों को भी पता चल चुकी है. अब क्या है ना की बेटी 14 साल की है बेटा 17 साल का है. तुम जानती हो कि आजकल के बच्चे कितने समझदार होते हैं थोड़ा सा भी कुछ दिखा तो सब समझ जाते हैं.
कहना क्या चाहती हो तुम…बरखा ने पूछा
अरे पहले पूरी बात तो सुन लो तभी तो समझ पाओगी तुम्हारे बच्चे भी साल 2 साल छोटे बड़े होंगे बस इतना ही फर्क होगा ना हमारे बच्चों में.
तो बरखा ने पूछा..
तो यह कि मैंने तुम्हारी सारी बातों पर बहुत गौर किया और एक फैसला लिया है.
क्या?..बरखा ने पूछा
कि मैं विकास को.. उसने वाकय…अधूरा छोड़ा ताकि बरखा के चेहरे का रिएक्शन देख सके.
क्या विकास को….बरखा ने पूछा
तुमने कहा था ना कि विकास मुझे छोड़ सकता है पर तुम्हें नहीं.
यह सुनकर बरखा खिलखिला कर हंस पड़ी.
इसमें हंसने वाली क्या बात है… सोना ने पूछा.
है ना इसमें हंसने वाली बात,कि विकास मुझे आज भी बहुत प्यार करता है जितना कॉलेज के दिनों में करता था. पर तुम मान ही नहीं रही दुहाई दे रही थी कह रही थी….
कि उस समय की बातें अलग थी आज सब अलग है मुंह बनाकर बरखा ने सोना को चिढ़ाया.
तुम सच कह रही थी तभी तो मैंने यह फैसला लिया है कि मैं तुम दोनों के बीच में से हट जाऊं.
तो हट क्यों नहीं जाती…बरखा ने कहा.
ऐसे थोड़ी हट जाऊंगी आखिर पत्नी हूं मैं उसकी. समाज के सामने विवाह करके लाया है वह मुझे..उसने खुद मुझे पसंद किया था अपने लिए.
अब क्या चाहती हो यार क्यों पहेलियां बुझा रही हो…बरखा झुंझुला गई.
अच्छा चलो असली मुद्दे पर आते हैं ठीक है…सोना ने कहा
बको तो फिर…बरखा बोली
मैं विकास के साथ नहीं रहना चाहती उसे तुम्हारे खातिर छोड़ने को तैयार हूं.. वह कह रहा था कि उसे हम तीनों की जरूरत नहीं है वह अकेला रह सकता है. उसने झूठ बोलकर पासा फेंका.
तो तुम ने हथियार डाल दिया हार गई तुम… बरखा..फिर खिलखिला पड़ी.
एक बात बताऊं सोना तुम्हें मैं बचपन से लेकर आज तक कभी नहीं हारी हूँ..मैंने जो चाहा है वह पाया है और देख लो आज भी मैं जीत गई.
तुम्हें भी मैं एक बात बताऊं आज तक मैं भी कभी नहीं हारी हूं. जानती हो क्यों..सदा सत्य धर्म और इमानदारी पर चली हूं.
पर आज तो हार गई ना…बरखा ने हंसी उड़ाई.
नहीं इतनी जल्दी फैसला मत करो..तुमने तो जो जीता होगा वह छल और बेईमानी से जीता होगा.
लेकिन मैंने जो जीता है वो सत्य और इमानदारी से जीता है..तुम्हारी जैसी सोच कभी नहीं रही मेरी.
अपने धर्म पर चलते हुए हार भी जाऊंगी तो मुझे कोई अफसोस नहीं होगा..पर ऐसा नहीं होगा मुझे..अपनी जीत पर पक्का यकीन है.
कमाल है ना तुम हम दोनों के बीच में से सदा के लिए हट रही हो क्योंकि विकास तुम्हें नहीं मुझे चाहता है. तो तुम सब कुछ छोड़ने को भी तैयार है उसके बाद भी तुम्हें अपनी जीत निश्चिंत लग रही है.
पागल तो नहीं हो गई हो तुम हां शायद डिप्रेस्ड हो गई हो…पति के कारण.
तुम भी ज्यादा खुश मत हो अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है ऐसा ना हो कि तुम खुद ही डिप्रेस्ड हो जाओ.
सोना…बरखा चिल्ला पड़ी.
चिल्लाओ मत यार तुमसे ज्यादा मुझे चिल्लाना आता है कान फट जाएंगे…सोना ने कानों में उंगलियां डाल ली…
अब मेरी बात ध्यान से सुनो मैं बच्चों सहित विकास की जिंदगी से जाने को तैयार हूं.मैंने अपने पूरे इंतजाम कर लिए हैं पर मैं विकास को सिर्फ एक शर्त पर छोडूंगी.
शर्त कैसी शर्त…बरखा ने पूछा.
बस एक छोटी सी शर्त..बोलो मानोगी….उसने हंसकर पूछा विकास को पाने की खातिर.
हां हां हर शर्त मानूंगी मैं विकास के लिए बोलो तुम…
कमाल है ना इतना अच्छा पति दो प्यारे प्यारे बच्चे हैं उसके बाद भी विकास से तुम संबंध रखना चाहती हो.जानते हुऐ कि वह भी शादीशुदा है दो बच्चों का बाप है.
मैं उसे आज भी प्यार करती हूं..
हूँ…. सोना ने हुंकारी भरी…
क्या हूं बरखा ने पूछा…क्या शर्त है तुम्हारी.
मैंने तुम्हें बताया ना कि मैं अपना पति घर सब छोड़ दूंगी तो बदले में तुम्हें भी अपना घर और पति बच्चे सब छोड़ना होगा. यह शर्त है मेरी.
क्या पागल हो गई हो बरखा चीख पड़ी..मुझे क्या जरूरत है कुछ छोड़ने की.
क्यों नहीं छोड़ सकती हो विकास तुम्हारे खातिर सब छोड़ सकता है तो तुम उसकी खातिर क्यों सब नहीं छोड़ सकती हो.
मैं अपने पति और बच्चों को नहीं छोड़ सकती हूं.. बरखा चीखी.
डर गई ना…सोना के चेहरे पर बहुत शांत भाव थे.
सोना…. बरखा चिल्ला पड़ी
कान फट जाएंगे तुम्हारे और मेरे दोनों के बरखा.. तुम सब को धोखा देकर इज्जत की आड़ में गुलछर्रे उड़ाना चाहती हो और मैं सब कुछ छोड़ दूं तुम्हारे लिए है ना.
क्या मतलब है तुम्हारा… सब क्या कहेंगे… अचानक बरखा के मुंह से शब्द निकल गए.
डर गई ना… आ गई ना दिल की बात डर के रूप में…सोना हंसी…ऐसे रिश्तों मे सब को डर लगता है बरखा..
देखो तुम बहुत ज्यादा बोल रही हो मैं तुम्हें अपने घर से धक्के मार कर बाहर निकाल दूंगी.
मुझे तुम्हारे यहां बैठने का शौक नहीं है बरखा लेकिन आज मैं अपनी पूरी बात करके यहां से जाऊंगी.
3 महीने से तुमने और विकास ने जो अति मेरे साथ की है मैं बहुत बर्दाश्त कर चुकी पर अब नहीं.. मुझे कमजोर ना समझना.
अगर विकास को तुम्हें पाना है तो तुम्हें भी आगे बढ़कर सब कुछ छोड़ना होगा.
नहीं ऐसा नहीं हो सकता है सारी दुनिया समाज क्या कहेगा बरखा बोली.
क्यों आज नहीं तो कल सबको पता चल ही जाएगा तुम्हारा और विकास दोनों का चरित्र(charitra)क्या है कैसा है.
मैं तुम्हें लास्ट बार समझाने आई हूं. हट जाओ मेरे रास्ते से छोड़ दो विकास को अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. यह न सोचना कि मैं सिर्फ तुमसे ही कह रही हूं कल रात मैंने विकास को भी लास्ट वार्निंग दी है मुझे कमजोर मत समझना…
माफ तो नहीं करूंगी और भूलूंगी भी नहीं…
समाज का तुम्हें भी डर है न बरखा…. सबको होता है क्योंकि हम जिस समाज में रहते हैं ना वहां पर आज भी इस तरह के संबंधों को कोई स्वीकार नहीं करता है..
न ही कभी कोई स्वीकारेगा.. यहां चरित्र(charitra) सबसे बड़ा गहना है इज्जत है रुतवा है. अपने चरित्र को संभालो एक बहन की तरह तुम्हें समझा रही हूं आखरी बार…बहुत बड़ी गलती कर रही हो तुम..
विकास से तुम्हारी शादी ना होना किस्मत थी तुम्हारी…जरूरी नहीं है किसी से प्यार करो वह मिल ही जाए या फिर मिलने पर उसकी बसी हुई जिंदगी में दाखिल होने की कोशिश करो. खुद को बर्बाद करो और दूसरे को भी.
सब कुछ हर किसी को नहीं मिलता है पर तुम्हारा नसीब तो देखो अच्छा पति अच्छा घर अच्छा परिवार अच्छे बच्चे सब कुछ है तुम्हारे पास इज्जत दौलत और तुम… तुम पागल हुई जा रही हो अपने चरित्र को गिराने में लगी हुई हो.
पता नहीं क्यों सोना की बात सुनकर बरखा एकदम शांत हो गई. एकदम सही तो कह रही है एक पल को ख्याल आ गया.
अमर कितना चाहता है उसे बच्चे जान छिड़कतें हैं उस पर और मम्मी पापा जी तो कहते नहीं थकते है कि,बरखा जैसी बहू भगवान सबको दे.
नहीं नहीं…ये क्या कर रही थी मैं..सोचते सोचते घबरा गई बरखा.
क्या हुआ क्या बहरी हो गई…क्या उसने पूछा..
सुन रही हो ना कि मै क्या कह रही हूँ.
हां हां बरखा के मुंह से निकला..एकदम चेतना जागृत हो गई उसमें.
मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए सोना बोली.
कैसा जवाब बरखा ने पूछा.
विकास को छोड़ोगी या अपनाओगी वह भी मेरी शर्त पर..
जो बरखा अभी तक चीख चिल्ला रही थी…ताने मार रही थी वह एकदम शांत हो गई थी… अंदर ही अंदर सोच रही थी. क्या हो गया था मुझे जो अपने चरित्र को गिराने में लग गई मैं.
गूंगी बनकर मत बैठो बरखा मुझे भी अपने घर जाना है.
मुझे थोड़ा वक्त दो सोचने के लिए… बरखा बहुत धीमी आवाज में बोली
इस मैटर में भी तुम्हें सोचने का वक्त चाहिए तुम्हें अपने चरित्र की चिंता नहीं है ना मुझे बहुत है. हम औरतों के पास ना बरखा सिर्फ चरित्र ही तो है कि हम कैसा करते हैं दिखाते हैं सोचते हैं और इसी से औरत की मर्यादा है और है ही क्या.
ऐसा नहीं है कि पुरुष के चरित्र पर उंगली नहीं उठती. उन पर भी उतनी ही उठती है जितनी कि औरतों पर उठाई जाती है..
जिसे तुम बार-बार प्यार का नाम दे रही हो ना वह तुम्हारा प्यार नहीं है प्यार होता तो तुम विकास के लिए सब कुछ छोड़ देती है यह सिर्फ आकर्षण है और कुछ नहीं.
चार दिन बाद ही सारा बुखार उतर जाएगा ध्यान रखना. लेकिन तब तक खुद की और दुनिया की नजरों में तुम्हारा चरित्र गिर चुका होगा.
हूँ..बरखा ने हुंकारी भरी…
फिर हूं जवाब दो यार सोना…खीझ कर बोली कर बोली…
बरखा चुप रही कोई जवाब उसे नहीं सूझ रहा था लेकिन वह अंदर ही अंदर सोच रही थी.
चलो ठीक है मैं चलती हूं जैसा हो मुझे शाम तक जवाब देना.अब मुझे वैसे भी कुछ नहीं कहना है बस मेरी सारी बात का ध्यान रखना.. कहकर वो दरवाजे की ओर बढ़ गई तभी कुछ सोचकर बरखा ने उसे रोका…
रुको सोना….
सोना पलटी हां…बोलो क्या हुआ?
तुम्हारी बात सुनकर मैं अंदर ही अंदर सोच रही थी कि तुम ठीक कह रही थी सारी गलती मेरी ही थी 3 महीने से मैंने तुम्हारी जिंदगी के साथ-साथ अपनी जिंदगी में भी उथल-पुथल मचा ली है.
तुमने मेरा घर टूटने से बचा लिया क्या मुंह दिखाती गलत काम करके सबको..
विकास को मैंने ही बेवकूफ बनाया था. इसलिए मैं तुमसे माफी मांगना चाहती हूं. इतना बुरा कहा उसके लिए भी माफ कर दो पता नहीं क्या हो गया था मुझे.सच में व्यक्ति का चरित्र ही गहना है चाहे स्त्री हो या पुरुष.
तुम बेफिक्र होकर घर जाओ आज के बाद में विकास से कभी नहीं मिलूंगी. अगर मिल भी गई तो अच्छे दोस्त वाली भावना दिल में होगी मैं वादा करती हूं तुमसे.उसने बढ़कर उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया.
तुमने मुझे,मेरे घर को और मेरे चरित्र को गिरने से बचा लिया.. कोई किसी का घर उजाड़ कर कभी सुखी नहीं रह सकता है शायद इसी कारण रोज मेरे घर दिल में भी उथल-पुथल होती थी पर अब नहीं है. कहते हुए उसकी नजरें झुक गई.
थैंक्स..सोना ने उसका गाल थपथपाया..
नहीं सोना तुम थैंक्स मत बोलो.. मैं तुम्हें थैंक्स बोलती हूं…
थैंक्स सोना…तुमने दो घरों को गिरने और टूटने से बचा लिया कहते हुए उसने सोना के सामने हाथ जोड़ दिए.
सोना ने उसके जुड़े हाथों को नीचे किया और चुपचाप उसके घर से निकल गई.
घर पहुंची तो बच्चे उसका इंतजार कर रहे थे बेटे ने उसे पानी दिया तो पानी ड्राइंग रूम में ही बैठ कर पीने लगी. कुछ सोचने लगी तभी विकास आ गया.
विकास कपड़े बदल कर उस के पास आकर बैठ गया.उसने उस की तरफ देखा चेहरा उतरा हुआ था.वह समझ गई कि बरखा ने उसे फोन करके जरूर कुछ कहा होगा.
वह उसी की तरफ देख रहा था उसने उससे कुछ नहीं कहा चुपचाप उठकर किचन की तरफ बढ़ गई.
विकास ने बेटे से पानी मांगा तो वो उसे घूरने लगा फिर चुपचाप पानी देकर चला गया. मन तो हुआ कि उसे रोके पर विकास की हिम्मत नहीं हुई.
विकास को पता था कि सभी नाराज है खासकर बेटा उसने तो उसे सुनाया भी खूब था और पूरी तरह मां के फेवर में था.
सब सोचकर विकास को शर्म आने लगी.
शाम को खाने के बाद सब काम से फुर्सत होकर सोना अपने कमरे में पहुंची तो देखा विकास रोज की तरह सोया नहीं था उसका इंतजार कर रहा था.
वो चुपचाप जाकर पलंग पर लेट गई विकास ने उसे आवाज दी…..सोना…
सोना ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया.
मुझे तुमसे कुछ बात करनी है…विकास बोला.
सुन रही हूं उसने उसकी तरफ बिना मुंह करें कहा तो विकास चेयर लेकर उसी की तरफ आकर बैठ गया. देखा तो सोना की आंखों में आंसू थे.
मैं जानता हूं कि तुम क्यों रो रही हो…विकास ने उसके आंसू पौछने चाहे तो उसने उसका हाथ हटा दिया पूछा–तुम कुछ कह रहे थे.
मुझे माफ कर दो सोना…..कहते हुए विकास ने उसके घुटनों पर सिर झुका दिया… मैं बहक गया था बरखा ने मुझे बहका दिया था.
अच्छा तुम छोटे बच्चे थे जो भड़काने में आ गए…बिफर पड़ी थी वह.. तुम चाहते तो बरखा जैसी किसी की भी हिम्मत नहीं थी तुम्हें बहकाने की. उसे क्यों गलत कह रहे हो गलती तो तुम्हारी भी थी.
तुम ठीक कहती हो गलती तो मेरी है किसी को दोष क्यों दूं.. प्लीज तुम नाराज मत हो.. सोना एक बार मुझे माफ कर दो.
तुम सच में सोना हो तुम ने दो घरों को टूटने से बचा लिया.. बरखा ने मुझे सब बता दिया है और मुझ से माफी मांगी थी उसने.
तुम भी मुझे माफ कर दो प्लीज मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगा बहुत प्यार करता हूं तुम्हें… मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बिना प्लीज माफ कर दो.
रो पड़ा वो..उसने उसके सामने हाथ जोड़ दिए.. सोना फूट-फूटकर रो पड़ी…विकास ने बढ़कर उसके आंसू पोछे.उसने उसे सीने से लगा लिया.
आपको मेरी लिखी स्टोरी कैसी लगी..कृपया कमेंट करके जरूर बताएं.
धन्यवाद !!!!! 🙏🙏🙏🙏🙏