ट्रेन की धड़ाधड़ाहट की आवाज मुझे सोने नहीं दे रही थी. मेरे दिल और दिमाग में भरा हुआ अहम (ahem)आज एक पल मे कोसों दूर हो चुका था.बार-बार नींद आ जाती फिर आवाज से नींद खुल जाती थी. पतिदेव बिना चिंता के आराम से सो रहे थे, जैसे घर में सो रहे हैं उन्हें देखकर हंसी आ गई.
सामने बर्थ पर बेटा सो रहा था और उसके ऊपर बीच की बर्थ पर छोटी बेटी सो रही थी.
मैं अपने परिवार सहित वापस अपने घर लौट रही थी मैं अपनी देवरानी की बेटी की शादी में गई थी सभी बेखबर सो रहे थे पर मेरी आंखों में नींद नहीं थी. बार-बार सौम्या का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ रहा था सौम्या मेरी देवरानी थी. सोच रही थी कि आज उसके प्रति मेरे दिल में नरमाहट क्यों भरी जा रही थी कहां गया मेरा अहम(ahem).
उसी की बड़ी बेटी की शादी से लौट रहे थे हम सब.उसके दो बेटी और एक बेटा था वही मेरे दो बेटे दो बेटी थी. बड़ी बेटी और बड़े बेटे की शादी मै कर चुकी थी.
बेटी ससुराल जा चुकी थी तो, बेटा बहू को लेकर अलग शिफ्ट हो चुका था क्योंकि अलग सिटी में उसकी जॉब थी. जॉब तो एक बहाना था पर दरअसल बहू हम लोगों के साथ रहना ही नहीं चाहती थी.यह बात मैंने किसी को नहीं बताई थी, क्योंकि कोई फायदा भी नहीं था.
इनकी गवर्नमेंट जॉब थी.बार बार ट्रांसफर होते रहते थे. इस कारण ससुराल में रुकना कम ही होता था, पर मैं अक्सर जाया करती थी देवर जी का अपना खुद का अलग कारोबार था जो, अच्छा खासा चलता था.
सौम्या बार-बार आकर मेरी आंखों के आगे खड़ी हुई जा रही थी. पता नहीं क्यों उसकी आज बार-बार याद आ रही थी… जब हम वहां से चले तो, मेरे और इनके पैर छूकर हाथ जोड़कर कहा था कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना जीजी आपका ठीक से ध्यान नहीं रख पाई. ना कोई अहम(ahem) था उसके अंदर ना कोई शिकन.
जब मन करे जीजी आ जाएगा जब तक मन करें मेरे पास ही रहिएगा इस बार मैं खुद आपका ध्यान रखूंगी. इस बार अगर आपको कोई परेशानी हुई हो क्षमा कीजिएगा.अबकी जब आप आए तो आपको कोई परेशानी ना हो मैं ध्यान रखूंगी.
और मैं सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई जैसे उसपर कोई एहसान कर रही थी,अहम (ahem)जो हावी था मेरे ऊपर.धन्यवाद या प्यार का एक शब्द ही नहीं था उसके लिए मेरे पास.
जबकि सब कुछ इसका उलट था सौम्या बिजी होते हुए भी हम सबका भी बराबर ख्याल रख रही थी और इतना ख्याल कि मेरे खुद के मायके वाले भी नहीं रखते थे.
वह सोचने लगी कि मेरे भाई-बहन भी शायद इतना ख्याल ना रखते पिछले महीने ही तो दीदी की बेटी की शादी में गई थी, दीदी को होश भी नहीं था कि हम कहां पड़े हैं.
खाना पीना तो दूर की बात थी हम लोगों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं थी हम लोग खुद ही लेकर खा पी रहे थे. दीदी अपने परिवार में ही मस्त थी उसे हमारी कोई परवाह नहीं थी.
जबकि सौम्या ने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि हमें कोई भी तकलीफ न हो. न ही किसी मेहमान को किसी भी तरह से कोई भी परेशानी हो.सभी उसकी तारीफ कर रहे थे, सिर्फ हम चारों के सिवा क्योंकि हमें चारों ही अहम (ahem)से भरे हुई थे.हम लोगों के मुंह से उसकी बुराई के सिवा कोई भी तारीफ नहीं निकल रही थी. हम चारों को छोड़कर वहां सभी प्रसन्न थे.
उसकी व्यवस्था सभी के लिए एक समान थी मेरे लिए तो और भी खास उसका बेटा बेटी सभी हमारा ख्याल रख रहे थे.
उसके बच्चों के चेहरे पर प्यार और इज्जत का भाव था और मेरे बच्चों के चेहरे पर अहम (ahem)और चिढ़ का भाव था.मैंने अपने बच्चों को भी अपने जैसा अहम (ahem)से भरपूर बना लिया था.उसने अपने बच्चों को अपने जैसा नर्म और शालीन बनाया था. जैसा मुझ में अहम (ahem)था वैसा ही अहम (ahem)कूट-कूट कर मेरे बच्चों में भी भरा हुआ था.
यह सब हमारे शिक्षा का ही असर था दोनों के बच्चों के स्वभाव में जमीन आसमान सा अंतर था.
सौम्या के इस व्यवहार ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था हालांकि ऐसा नहीं था कि यह सब पहली बार था मैं जब भी ससुराल जाती तो सौम्या मेरा बहुत ध्यान रखती थी. लेकिन पता नहीं क्यों इस बार मेरे दिल के अंदर आर पार हो गया था सब कुछ. सोच रही थी कि मेरे अंदर का अहम (ahem)क्या आज मर गया.
मेरे दिल में उसके प्रति जो गलत भावना बनी थी या बना दी गई थी यह सब क्या था समझ नहीं पा रही थी. बार-बार मन बेचैन हो रहा था चुपचाप अपनी सीट पर लेटे-लेटे कब बीती दुनिया में चली गई पता ही नहीं चला.
आज से 26 साल पहले मेरी शादी रोहन से हुई.शादी के कुछ दिन पहले ही रोहन की जॉब लगी थी.रोहन का ससुर जी के कारोबार में इंटरेस्ट नहीं था इसलिए राहुल रोहन का छोटा भाई पिता के साथ में कारोबार चला रहे थे.
दीदी यानी कि ननद की शादी पहले ही हो चुकी थी. ससुराल आई तो मैंने अपने व्यवहार से सबका मन मोह लिया था बड़ी बेटी के होने के कुछ महीने बाद ही राहुल का रिश्ता आ गया.सौम्या सबको पसंद थी इसलिए राहुल का रिश्ता सौम्या के साथ तय कर दिया गया.
उसी दिन शाम को दीदी और मेरी बुआ बुआ सास जो इसी घर में रहती थी. मेरे कमरे में आई.
बुआ सास सासु माँ को पसंद नहीं करती थी.हर समय बुआ जी सासू मां के काम में मीन मेख निकालती रहती थी और घर में अक्सर झगड़े करवाती रहती थी.पर सासू मां उन से कुछ भी नहीं कहती थी.वह नहीं चाहती थी कि उनके कारण घर में आपस में झगड़ा हो.
बुआ सास का वो वाला हिसाब था कि जिस थाली में खा रही थी उसी में छेद कर रही थी यह मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी.
दीदी और बुआ जी को देखते ही मैंने मुस्कुराकर उन्हें बैठने को कहा और पानी ला कर दिया. बुआ मुझे देख कर मुस्कुरा कर रही थी.
क्या हुआ…..दीदी मैंने पूछा.
मुझे तुझसे कुछ बात करनी थी….उन्होंने गिलास रख कर के कहा.
हां बताइए….मैंने पूछा.
देख अगले महीने राहुल की शादी हो जाएगी फिर, उसके बाद.. उन्होंने बात बीच में छोड़ी…बुआ जी बोली बस अब वक्त आ गया है समझदार हो जा तू…
क्यों बुआ जी क्या हुआ….मैंने पूछा.
वक्त आने दे तुझे खुद ही सब पता चल जाएगा…. अब की दीदी बोली लेकिन उन्होंने बात अधूरी छोड़ कर एक तीर चलाया था जो सटीक बैठ गया था और मैं उनकी बातों में आ चुकी थी.
अरे बताइए ना दीदी क्या पता चल जाएगा…
मुझे तो यह सौम्या बड़ी तेज लग रही है तू देखना तेरे साथ कुछ बुरा न हों ऐसा ना हो कि आते ही सब कुछ अपने कब्जे में ले ले. बुआ सास ने मुझे डराया था.
माँ ठहरी सीधी साधी ऐसा ना हो कि सब कुछ उसे ही सौंप दें और तुझे कुछ ना मिले….ना जाने क्या-क्या दीदी कहती रही और मैं हां में हां मिलाये चली जा रही थी.
दीदी और बुआ जी बातों के तीर चला कर मुझे भड़का कर जा चुकी थी और मैं उनकी बातों में आ चुकी थी. रही सही कसर मेरी मां और बहनों ने पूरी कर दी थी मैंने अपने दिमाग का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया.मेरा अहम (ahem)एक धारणा के रूप में मेरे दिल में घर कर गया
हालांकि कई बार मैंने उन्हें खुद मेरी बुराई करते सुना था जब भी मैं उनसे कहती थी वह बहाना बनाकर दूसरे के ऊपर रखकर बात बनाकर टाल जाती थी… और मैं सब जानते हुए भी उनकी बातों में आ जाती थी.
अगले महीने सौम्या बहू बनकर घर में आ गई.. पता नहीं मुझे क्या हो चुका था कि मेरे दिल में सौम्या के प्रति नफरत और जलन घर कर गई थी. या भर दी गई थी. और इसी के साथ एक अजीब सा अहम (ahem)आ गया मेरे अंदर.aisa ahem jo mujh pr puri trh se haavi ho chuka tha.
आते ही उसने पूरे घर को अच्छे से संभाल लिया था जहां तक मुझे याद है उसने मेरे और रोहन और मेरे बच्चों के साथ कोई भी गलत व्यवहार नहीं किया था सबकी इज्जत करना रिश्ता निभाना बहुत अच्छी तरह से जानती थी. जबकि मैं रिश्तो की मर्यादा को ना समझती थी ना समझना चाहती थी.
सभी उसकी तारीफ करते थे,क्या तो रिश्तेदार क्या पड़ोसी या कोई आने वाला मेहमान. यह सब मुझे सहन नहीं होता था.
मेरे साथ वो हर समय काम में हाथ बटाती थी लेकिन मैंने कभी उसके साथ काम में हाथ नहीं बटाया था.
कभी-कभी रोहन भी सौम्या की बहुत तारीफ करते थे..
देखो ना लता अपना राहुल कितना भाग्यशाली है, जो उसे सौम्या जैसी समझदार पत्नी मिली है.ना उसे कुछ कहना पड़ता है ना सुनना वह उसके साथ मिलकर सब कुछ संभाल लेती है.. रोहन ने हंसते हुए कहा…. तो लता चिढ़ गई थी…
क्यों आप भाग्यशाली नहीं हो जो मैं आपको मिली….क्या मेरे मिलने से आपके भाग्य फूट गए…रोहन घबरा गए और संभल कर बोले …अरे नहीं यार तुम भी कहां की कहां ले जा रही हो… तुम जैसी पत्नी तो सिर्फ भाग्यवान लोगों को ही मिलती है मैं तो राहुल से भी ज्यादा भाग्यशाली हूँ जो तुम मुझे मिली हो..
वक्त बढ़ रहा था इसी बीच 3 बच्चे मेरे और हो चुके थे यानी कि दो बेटे और दो बेटी के माता-पिता हम बन चुके थे तो सौम्या के भी दो बेटी और एक बेटा हो चुका था.
ट्रांसफर होते रहे और हम हर साल..महीने में घर आते जाते रहे कई बार ऐसा होता कि मैं महीनों ससुराल रह जाती थी.मेरे रहने से सौम्या को कोई
मैं महीनों ससुराल रह जाती थी.मेरे रहने से सौम्या को कोई दिक्कत नहीं होती थी.वह मुझे जीजी कहती थी. वो मेरी हर बार इज्जत करती और मैं उसे नीचा दिखाती. पर वह इसे हंस कर लेती और कह देती थी कि जो प्यार करेगा वही तो डांटेगा पर ऐसा नहीं था मुझे उससे कोई प्यार या लगाव नहीं था सिर्फ नफरत के सिवाय.
मैं आगन मे बैठी हुई थी मैंने सौम्या से चाय बनाकर लाने के लिए कहा.. सौम्या बोली जीजी अभी लाती हूं बनाकर….कहकर…. किचन की ओर बढ़ गई.
तुझसे तो मुझे बहुत नफरत है प्यार तो तुझे कर ही नहीं सकती मैं बुदबुदा रही थी.
दीदी आई हुई थी मैं उन्हें सास के कमरे में छोड़ कर आई थी इस बात से अनभिज्ञ बुदबुदा रही थी, और वह मेरे पीछे खड़ी मजा ले रही थी..
और साथ में बुआ सास भी हंस रही थी जैसे ही मैंने देखा तो मैं सकपका गई..
अरे दीदी और बुआ जी आप कितनी देर से खड़ी है यहां….
जब से तू नफरत कर रही थी किसी से…..दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी.उन्हें पता था कि यह सब सौम्या के प्रति भाव है उसका…
मैं नहीं तो……उसने सफाई दी
मैंने सब सुन लिया है मुझे बेवकूफ मत बना..
लता ने कुछ बोलना चाहा तो दीदी ने चुप करा दिया…मैं कहती थी ना तुझसे … अब देख ले अब माँ भी उसी की तारीफ करती हैं. मुझे तो पूछती ही नहीं है.. दीदी ने कहा तो बीच में ही बुआ जी बोल पड़ी मुझसे तो वह वैसे भी बहुत ही चिढ़ती है.. उन्होंने आग में घी डाला था.
अब मैं क्या करूं दीदी मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता है सौम्या असहाय सी होकर बोली.
कुछ मत कर रोहन से बात कर तुम और रोहन तो यहां रहते नहीं. ऐसा ना हो कि इतना बड़ा घर कल को सब कुछ राहुल और सौम्या के नाम कर दिया जाए.. बुआ जी ने भड़काया था.
यह बात तो मुझे भी सच लग रही है दीदी…बोली थी.
यह क्या कह रहे हैं आप दोनों…..
सच कह रहे हैं हम दोनों तू रोहन से बात कर ऐसा ना हो कि देर हो जाए….कहकर दीदी बाहर चली गई…मैंने देखा कि दीदी जीजा जी के पास जाकर खिलखिला हंस रही थी जीजा जी भी हंस रहे थे पर मैं समझ नहीं पाई..
रोहन ने लता के कहने पर हिस्से की मांग की तो पिताजी ने दोनों बेटे बहू को बुलाकर उनसे पूछा.. सौम्या के मन की पूछनी चाहिए तो मैंने उन्हें टोक दिया…. पिताजी इस से क्या पूछने की जरूरत है यह तो छोटी है.
वह कुछ बोलना चाहते थे सौम्या ने उन्हें रोक दिया जीजी सही कहती है माजी जो फैसला है बड़ो को करना चाहिए. माजी ने जो गहने मुझे शादी में पहनने के लिए दिए थे. वह उन्होंने सौम्या को देने के लिए कहा दोनों आधा-आधा ले ले पर मैंने,उसे भी देने से इनकार कर दिया. यह कहकर कि उसके पास इतने सारे गहने हैं तो.
और सौम्या ने भी लेने से मना कर दिया था मेरे पास तो बहुत सारे गहने हैं मां जी इनकी अब क्या जरूरत है.सारे गहने मेरे पास रह गए थे मैं मन ही मन बहुत खुश थी.
हिस्सा लेने के 3 महीने बाद मैं ससुराल आई थी मैं देखना चाहती थी कि अब मेरे प्रति सब का क्या व्यवहार होगा.
मेरे आने पर सौम्या उसके बच्चे बहुत खुश थे इस बार में पूरे 1 माह के लिए बच्चों की छुट्टियों में आई थी पर सौम्या के चेहरे पर शिकन भी नहीं थी..जबकि मैं डर रही थी कि क्या होगा.
सौम्या मुझसे बात करने की कोशिश करती तो मैं बहाना बनाकर चली जाती थी .mera ahem he baar use nicha dikhata.लेकिन,सौम्या ने इस बात का कभी बुरा नहीं माना. मैंने अपने बच्चों और रोहन को भी अपने जैसा बना दिया था कोई भी राहुल सौम्या और उनके बच्चों को पसंद नहीं करता था.
जबकि सौम्या राहुल और बच्चों के मन में हम लोग के प्रति कोई मैल नहीं था.
मैं यह सब महसूस करती थी पर इन चीजों को मैं मानने के लिए तैयार नहीं थी मेरी जलन ईर्ष्या और नफरत इतनी बढ़ चुकी थी कि मैं उसकी अच्छाई में भी दिखावा ढूंढ लेती थी.
कुल मिलाकर सौम्या अपने नाम के अनुरूप सौम्य थी और मैं उससे एकदम उलट थी पर मैं उससे अपने आप को हर हाल में अच्छा ही साबित करती थी. मुझे उसके सामने झुकना पसंद नहीं था.
मैं समझदार होकर भी कुछ नहीं समझना चाहती थी दीदी और बुआ जी अपना काम कर चुकी थी मेरे दिल में फूट डालकर और मैंने कभी इस से अलग सोचने की कोशिश नहीं की कि जैसा आज सोच रही हूं.
इस बीच 25 साल बीत चुके थे मुझे पता ही ना चला आना जाना लगा रहा. मै ही आती रहीं लेकिन सौम्या को मैंने कभी घर नहीं बुलाया. सिर्फ बड़े बेटे और बेटी की शादी में बुलाया था. मैंने अपने दोनों बच्चों की शादी एक साथ की थी 3 दिन के आगे पीछे इस शादी में सौम्या और राहुल बच्चों सहित आए थे.
इन दोनों ने मेरा बहुत सहयोग किया सभी तारीफ कर रहे थे. बस एक मैं ही थी जो कुछ नहीं कह रही थी.मैंने अपने मायके वालों के आगे और अपनी सहेलियों के आगे उन्हें तुच्छ साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.
इस बार भी सौम्या सब कुछ समझते हुए हंसकर टाल चुकी थी. वह सब चुपचाप शादी करके चले गए थे.
सौम्या चाहती तो मेरे सब किए का बदला अपनी बेटी की शादी में ले सकती थी. पर शायद उसकी सोच मेरी जैसी नहीं थी और शायद यह सब तो उसके दिमाग में भी दूर-दूर तक नहीं होगा.पहचान हो चुकी थी मुझे उसकी…पर मैं इस बार भी मानने को तैयार ना थी.
अचानक से कोई स्टेशन आया गाड़ी झटके से रुकी लता ख्यालों की दुनिया से बाहर आ गई.बाहर झांककर देखा तो चाय पानी वाले शोर मचा रहे थे.
खिड़की से बाहर देखने लगी भोर हो रही थी.. बच्चे और रोहन उठ गए.
अरे माँ आप जाग रही हो क्या बेटी ने आंख मलते हुए पूछा था..
पता नहीं बेटा उसके मुंह से निकला..
पता नहीं का क्या मतलब है मम्मा…बेटा ने पूछा
तुम्हें देखकर तो नहीं लगता है कि तुम सोई हो रोहन ने पूछा…कुछ सोच रही थी क्या..
नहीं तो लता संभल कर बैठ गई….वह सौम्या…बस इतना ही मुंह से निकला था कि बेटी बोल पड़ी कौन सौम्या….
तेरी चाची सौम्या…..
क्या हुआ सौम्या को……बेटी ने मुंह बनाकर पूछा
तेरी चाची है बेटा तेरी मां की तरह है उसका नाम नहीं लेते हैं…
अरे वाह माँ आज सूर्योदय कहां से होने वाला है… बेटे ने व्यंग्य कसा..आप ही ने तो हमें बचपन से लेकर आज तक सौम्या के बारे में बताया है कि वह कितनी खराब है कितनी तेज है और ना जाने क्या-क्या….
और आज आप ही हमें लेक्चर दे रही हो उसके बारे में… बेटी ने कहा सुबह-सुबह दिमाग खराब कर दिया उसका नाम लेकर….
लता चुप हो गई थी.ट्रेन आगे बढ़ गई सब अपनी अपनी सीट पर जा चुके थे.
वह भी अपनी सीट पर आंख बंद करके सोचने लगी उसे महसूस हो रहा था कि कुछ गलत हो चुका है.
सच ही तो कहा था बेटे ने मैंने ही तो उसकी सबके सामने गलत इमेज बनाई थी वरना छोटे बच्चे किसी के बारे में क्या जानते हैं समझते हैं हम जैसा बच्चों से बताते समझाते हैं तो वो वही मानते हैं और समझते हैं और वही यकीन में बदल जाता है.
पता नहीं आज क्या हो रहा था मन में अजीब सी बेचैनी थी आज पहली बार मैं सौम्या से नफरत नहीं कर रही थी. वह बेकसूर थी और मैं कसूरवार.mera ahem chur ho chuka tha.
उसे भी मेरे व्यवहार का एहसास था कि मैं उसके प्रति क्या धारणा रखती हूं.kitna ahem h mere andr. क्योंकि मुझे याद है राहुल भी मेरे व्यवहार को सौम्या के प्रति देखकर कई बार दबी जवान में टोक चुका था.पर हर बार सौम्या उसे समझा कर माहौल को हल्का कर देती थी.
उसने मुझसे कभी कुछ नहीं कहा था हमेशा इज्जत ही दी थी.काश कि हम दोनों में झगड़ा होता जैसे अन्य घरों में देवरानी जेठानी के बीच में होता है पर यही तो आश्चर्य था कि हम दोनों के बीच कभी झगड़ा नहीं हुआ था.
ताकि झगड़े का बहाना लेकर मैं भी उस पर इल्जाम लगा सकती थी. पर मेरे पास तो उसे गलत ठहराने का कोई भी कारण नहीं था.
मेरे घमंड मेरी जलन ने कभी उसे नहीं समझा काश कि मैं यह सब अपने दिमाग से निकाल देती तो हमारा परिवार एक हो जाता.
जो आज सब मेरे बच्चों के मन में था वह सब मेरा किया हुआ था गलती मेरी ही थी कि जो सुनी सुनाई बातों पर यकीन करती रही जो मेरे साथ वह कर रही थी उसे मैंने ना तो समझा न विश्वास किया ना ही देखा.
काश! कि ऐसा हो कि मैं उसे अपनी छोटी बहनों की तरह गले लगा सकूं..माफी मांग सकूं अब तक कि…अपने किए 25 सालों के व्यवहार की छोटी है तो क्या हुआ वह भी तो बड़ी होकर छोटो से अक्सर अपनी गलतियों की माफी मांग लेती थी उन्हें मनाने के लिए बिना गलती के भी.
अक्सर वह बच्चों से भी बड़ी आसानी से सॉरी कह देती थी. जब मैं उसे टोकती तो अक्सर एक ही शब्द होते थे..तो क्या हुआ दीदी गलती तो गलती है छोटे करें चाहे बड़े गलती होने पर छोटे से भी माफी मांग लेनी चाहिए इसमें शर्म कैसी.
उस की बातें मेरी कानों में गूंज रही थी और मैं बुदबुदा रही थी काश!!सौम्या कोई ऐसा वक्त आए..मैं भी तुमसे माफी मांग सकूं.. जो मैंने किया है उसे संभाल सकूं सुधार सकूं. समझ नहीं पा रही हूं कि क्या था मेरे दिल में तुम्हारे प्रति मेरे दिल में अहम (ahem)या फिर धारणा.. यह सब मेरा ही किया हुआ था. तुम गलत नहीं थी कभी भी नहीं है.
काश!!मैं तुम्हे गले लगा सकती…..पता नहीं यह सब मैं कभी कर पाऊंगी या नहीं.
क्या लता क्या कर पाओगी.. हमारा स्टॉप आ चुका है,बच्चे तुम्हें आवाज दे रहे हैं चलो… रोहन थोड़ा गुस्सा होकर बोले थे.. कहां खोई हुई हो सुबह-सुबह…
बेटे ने बच्चों की तरह हाथ पकड़कर ट्रेन से उतार लिया था… मैं अंतर्द्वंद में फँसी अपने परिवार के साथ चल पड़ी…lekin aaj ahem mere sath nhi cal rha tha.
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