जिस प्रकार से हिंदू धर्म में दिवाली का त्यौहार मनाते हैं उसी प्रकार से हिंदू धर्म में देव दिवाली(dev diwali) का भी विशेष महत्व माना
जाता है.देव दिवाली दिवाली के 15 दिन बाद मनाई जाती है.
देव दिवाली(dev diwali) को देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा की तिथि को देव दिवाली (dev diwali)का त्यौहार मनाया जाता है.
मान्यताओं के अनुसार देव दीवाली (dev diwali)होने के कारण सभी देवी देवता काशी की पवित्र धरती पर आते हैं और देव दिवाली(dev diwali) मनाते हैं.
देव दिवाली (dev diwali)को भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और दीपदान किया जाता है. काशी नगरी को इस दिन दीपों से सजाया जाता है वहां के प्रत्येक घाटों पर दीपों से सजा कर दीपदान किया जाता है.
देव दिवाली को (dev diwali)पूरे भारतवर्ष में उत्साह से मनाया जाता है प्रत्येक मंदिरों को दीपों से सजाया जाता है और पूजा अर्चना की जाती है.
देव दिवाली (dev diwali)क्यों मनाई जाती है– देव दिवाली (dev diwali)को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका संबंध त्रिपुरासुर नाम के राक्षस से माना जाता है.
देव दिवाली (dev diwali)को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है.
कहा जाता है कि एक त्रिपुरासुर नाम के राक्षस ने धरती पर आतंक मचा रखा था. जिससे ऋषि मुनि देवी देवता आदि सभी उसके आतंक के कारण परेशान हो चुके थे.
इसका कोई हल न मिलने के कारण सभी ऋषि मुनि देवी देवता परेशान होकर भगवान शिव के शरण में पहुंचे.सभी ने भगवान शिव से विनती की कि उन्हें त्रिपुरासुर के आतंक से बचाये और उनकी रक्षा करें.
तब महादेव शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया.इसी खुशी में देवी देवताओं ने काशी के गंगा घाट पर स्नान करके दीप जला
कर दीपदान किया.
तभी से इसे देव दिवाली (dev diwali)के नाम से जाना जाने लगा.तब से ही
हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा की तिथि को देव दिवाली (dev diwali)के रूप में मनाने की परंपरा की शुरुआत हुई.
जिसे हिंदू धर्म में सभी देव दिवाली (dev diwali)को दिवाली की तरह ही खुशी-खुशी मनाते हैं.
देव दिवाली पर दीपों के दीपदान का क्या है महत्व– देव
दिवाली वाले दिन गंगा में स्नान करके पूजा अर्चना करते हैं और गंगा के घाटों पर नदी तालाब सरोवर के घाटों पर मिट्टी के दीए जलाकर देव दिवाली (dev diwali)मनाई जाती है. दीपदान किए जाते हैं.
काशी नगरी में देव दिवाली (dev diwali)का नजारा बेहद भव्य और खूबसूरत होता है.
इस दिन काशी के गंगा घाट पर और पूरे बनारस शहर के सभी पवित्र मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं.जहां का नजारा देखने काबिल होता है और यहां देव दिवाली के इस त्यौहार को बहुत ही खुशी के साथ धूमधाम से मनाते हैं.
दीपों की जगमगाहट से पूरी काशी नगरी रोशन हो जाती है.
किस दिन है देव दिवाली और क्या है शुभ मुहूर्त– हिंदू पंचांगों के अनुसार इस बार देव दिवाली की तिथि 27 नवंबर 2023 की है
देव दिवाली पर दीप जलाने को शुभ मुहूर्त संध्या काल में 05 बजकर 08 मिनट से 07 बजकर 47 मिनट तक का है.
कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 26 नवंबर रविवार की दोपहर को 3 बज कर 53 मिनट पर शुरू होगी जो कि दूसरे दिन 27 नवंबर को दोपहर में 2 बज कर 45 मिनट पर समाप्त होगी.
इस कारण इस बार उदया तिथि के अनुसार देव दिवाली 26 नवंबर को ही मनाई जाएगी.देव दिवाली को कार्तिक की पूर्णिमा तिथि को प्रदोष काल में मनाया जाता है.
देव दिवाली पर क्या-क्या करना चाहिए– देव दिवाली वाले दिन भी पूरे घर की दिवाली की तरह ही सफाई करनी चाहिए. घर को लाइट और दीपो से सजाना चाहिए.
पास के किसी शिव मंदिर में जाकर 5-7-11 या इच्छा अनुसार दीप जलाने चाहिए.दीपदान करने चाहिए.घर के दरवाजे पर भी तेल के दिए बनाकर जलाने चाहिए.
रंगोली बनानी चाहिए और घर के मंदिर मैं भी घी के दिए बनाकर जलाने चाहिए. ऐसा करना शुभ माना जाता है
देव दिवाली को भी धूमधाम से मनाना चाहिए.पटाखे जलाने चाहिए.इस से घर में सुख समृद्धि और खुशियां आती हैं
Disclaimer- यह लेख सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित है.
धन्यवाद !! 🙏🙏🙏🙏🙏